वाणी में ही जहर है और वाणी में ही अमृत है।
वाणी में ही जहर है और वाणी में ही अमृत है। कोयल अपने वाक्माधुर्य से सभी को प्रिय लगती है और काग की स्थिति इससे भिन्न है। वाणी में जादू भरा आकर्षण है। स्वामी विवेकानंद जब विश्व धर्म सम्मेलन में बोलने को खड़े हुए तो वहां अशांत वातावरण था। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा ‘ब्रदर एण्ड सिस्टर’। सब शांत हो गए, क्योंकि यह नई शुरुआत थी। इससे पूर्व सभी वक्ता ‘लेडीज एण्ड जेन्टसे’ कहकर अपनी बात शुरू कर रहे थे। वाणी में विवेक चाहिए। विवेक है तो आप खुद ही विवेकानंद हैं। बंदूक से निकली गोली और मुख से निकली बोली वापस नहीं आती। इसलिए सोच-समझकर बोलो। अपनी कद्र करना चाहते हो, तो अपनी वाणी की कद्र करना सीखो। कम बोलो-काम का बोलो।